गुप्त नवरात्रि आद्यशक्ति दुर्गा के स्मरण से अभिष्ट सिद्धि का महत्वपूर्ण काल है। इसमें देवी शक्ति की उपासना के लिए विशेष रूप से दुर्गासप्तशती का पाठ कर महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की कृपा से शक्ति, समृद्धि और ज्ञान पाकर जीवन को सफल बनाने की कामना की जाती है।
शास्त्रों के मुताबिक देव उपासना दोषरहित होने पर शीघ्र और मनचाहा फल देती है। इसलिए देव दोष से बचने के लिए दुर्गासप्तशती का पाठ किसी विद्वान और गुणी ब्राह्मण से धार्मिक विधि-विधान के साथ कराएं या जरूरी जानकरी लेकर स्वयं करे। अगर देवी भक्त स्वयं दुर्गासप्तशती का पाठ करता है तो शास्त्रोक्त बातों के अलावा यहां बताई जा रही कुछ सरल व्यावहारिक बातों को भी जरूर ध्यान रखें -
- दुर्गा सप्तशती का पाठ पुस्तक से ही करें। कंठस्थ पाठ तभी करें जब यह सुनिश्चित हो कि शब्द और उच्चारण दोषरहित है।
- दुर्गा सप्तशती का पाठ हाथ या गोद में लेकर करना दोष माना जाता है। इसलिए किसी चौकी पर पुस्तक रख कर ही पाठ करना फल प्राप्ति की दृष्टि से श्रेष्ठ माना गया है।
- दुर्गा सप्तशती का पाठ हमेशा धीमी आवाज के साथ समान गति से करें। मन ही मन पाठ दोषपूर्ण माना गया है।
- दुर्गा सप्तशती के सभी देवी चरित्रों का पूरा पाठ करें। चरित्रों का अधूरा पाठ, शब्द या वाक्य दोष कामना और अभिष्ट सिद्धि में बाधक माने गए हैं।
- नवरात्रि व्रत और दुर्गा सप्तशती पाठ के पूर्ण होने पर कन्या और ब्राह्मण भोज यथाशक्ति जरूर करें। ऐसा करना सारे दोष नाश कर शुभ और पुण्य फल देने वाला माना गया है

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