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शनिवार, अक्टूबर 29, 2011

गुरु वंदना----


गुरु वंदना----

गुरू- शिष्य पवित्र रिश्ता आदि काल से है निराला,

इसीलिये कहा गया है माता- पिता, गुरू- देवता।


बच्चे का जन्म और लालन- पालन करते माता- पिता,


लेकिन गुरू के सनिध्य से ही वह बनता महात्मा।


हो अगर  राम, कृष्ण, कर्ण विवेकानन्द जैसे शिष्यों का साथ,


तो किसी भी गुरू के लिये होगी यह गौरव की बात।


शिष्य एकलव्य की तरह ही गुरू को अगुठा दान कर,


सही मायने में फिर भी नही तर सकता है गुरू का कर्ज।

हर व्यक्ति की सफलता में होता है गुरू का हाथ,

उनके आदर्शो, विचारोे को हमेशा रखना अपने साथ।


गुरू के सत्त प्रयासों से ही पशु समान आत्मा,


विवेक के उजागर से ही बन सकता है देवात्मा।


लक्ष्य को पाने में यदि सहयोग हो गुरू का,


कठिन से कठिन कार्यो में भी आने लगती है सुगमता।


नही किया जा सकता किसी गुरू की महिमा का बखान,


क्योकि गुरू होता हैं दीपक की एक लौ के समान,


जो स्वंय जलकर अपने शिष्यों को देता अलौकिक ज्ञान।


अंधकारमय जीवन में दिव्य ज्ञान से करता है प्रकाशवान,


तभी गुरू ब्रहा, गुरू बिष्णु गुरू देप महेश्वर,


गुरू साक्षात् परमब्रहा तस्मै श्री गुरूवे नमः हे शास्त्रों मे।


गुरू- शिष्य पवित्र रिश्ता आदि काल से है निराला,


इसीलिये कहा गया है माता- पिता, गुरू- देवता।


बच्चे का जन्म और लालन- पालन करते माता- पिता,


लेकिन गुरू के सनिध्य से ही वह बनता महात्मा।


हो अगर  राम, कृष्ण, कर्ण विवेकानन्द जैसे शिष्यों का साथ,


तो किसी भी गुरू के लिये होगी यह गौरव की बात।


शिष्य एकलव्य की तरह ही गुरू को अगुठा दान कर,


सही मायने में फिर भी नही तर सकता है गुरू का कर्ज।

हर व्यक्ति की सफलता में होता है गुरू का हाथ,

उनके आदर्शो, विचारोे को हमेशा रखना अपने साथ।


गुरू के सत्त प्रयासों से ही पशु समान आत्मा,

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