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बुधवार, सितंबर 07, 2011

प्रिय मित्र सुधांशु निर्भय जी,


प्रिय मित्र सुधांशु निर्भय जी,
सदर वन्दे/नमस्कार,आज आपने फेसबुक के एस्ट्रो लोजर ग्रुप में जो कुछ भी लिखा वह हमें अच्छा लगा किन्तु आपने हमारा नाम नहीं लिखा एक मात्र यह त्रुटी/ गलती कर दी हें..आप हमारे मित्र अनुज  समान हे..आपकी यह गलती/ त्रुटी हम ठीक कर देते हें/ सुधार देते हें...मित्र हम आपके कृतग्य और ऋणी हें की आप ने हमें देवरिषि नारद के बराबर समझा(नारद की उपाधि दी)..!!!क्या सच का आईना दिखाना गलत हे??? आज हमारा नाम सभी जगह जाना पहचाना जाता हे तो इसमें इश्वर की कृपा और हमारी स्वर्गीय माता जी का आशीर्वाद एवं दुवाएं शामिल हें जी..हमने किसी की चमचागिरी/गुलामी करके ये मुकाम/स्थान प्राप्त/ हांसिल नहीं क्या हें...और न ही किसी को इन सम्मान/ उपाधि/परुस्कार के लिए किसी प्रकार की रिश्वत/ धन या अन्य कोई प्रलोभन ही दिया हे...आप हमारा   सार्वजानिक सम्मान/अपमान/असम्मान करना चाहते हे तो हमें उस दिन का इंतजार /प्रतीक्षा रहेगी  /रहेगा..हमें तो उत्सुकता से आपके उस अपमान/असम्मान के बुलावे की प्रतीक्षा रहेगी..आप भूल रहें हे की में एक पंडित (ज्योतिषी----झूंठा/अनाड़ी/मक्कार..आपकी सोच के अनुसार) होने के साथ साथ एक इमानदार पत्रकार भी हूँ..आप यह भी जानते हें ही हम दोनों के कई पत्र-पत्रिकाओ में अनेक दफा लेख साथ-साथ प्रकाशित भी हुयें हे..और मेने खुद ने आपका संपर्क अनेक प्रकाशकों/संपादकों से करवाया था/ हें..आपका लिखना हें की में नारद की तरह इधर की उधर करता हूँ...चुगली करता हूँ..आपने लिखा हें मेरा कई बार अपमान   हुआ हें तो मुझे इस बात की कोई शिकायत..गिला-शिकवा भी नहीं हें..क्या स्वाभिमान से जीना और आत्मसम्मान की रक्षा अपराध होता हें??? किसी के गलत कार्यों में सहयोग न कर विरोध करना गलत हें..???  मित्र में वृश्चिक लग्न का जातक  हूँ मिट सकता हूँ मगर झुकना मेरे स्वभाव के विपरीत हें..मित्र महत्वपूर्ण यह नहीं हें की दुनिया मेरे बारे में क्या सोचती हें..इस बात मुझे कोई फर्क/हानी-लाभ नहीं पड़ता हें मित्र...महत्वपूर्ण यह हें की में दुनिया/समाज/देश के लिए क्या सोचता हूँ..आप मेरे बारें में सभी   कुछ जानते हो..वेसे भी मेरा जीवन एक खुली किताब की तरह हें...ठीक वेसे ही में भी आपके बारें काफी कुछ जनता हु..किसी ने ठीक ही कहाँ हे यदि आपका अपना कोई मित्र   नाराज हो जाये तो उससे खतरनाक दुश्मन  कोई नहीं हो सकता हें..प्रभु जी मुझसे ऐसा कोनसा अपराध हो गया हे ..आपके सम्मान में जो आप इस प्रकार की अच्छी बाते कर रहें हे..कहीं आप उस वर्ग(संपादक-प्रकाशक) का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर रहे हें जहा पर आज कल मेरे लेख नहीं छप रहे हे यह फिर उनकी दुकान/कंपनी बंद हो गयी हें या फिर मेने जो लिखा   उसमे से कोई बात/ विचार आपको चुभ गया हो..आपका अहित तो नहीं हो गया..कही अनजाने में कोई  पोल तो नहीं  खुल गयी .!!!!!..आपको बुरा लगा हो..???
वेसे कल शाम को (06 सितम्बर2011 को )सायंकाल पाँच बजे आपने फोन पर तो बड़ी प्यार बरी बातें की थी न 15 मिनट तक..वह क्या था प्रभु..मित्र बंधू???
आपके विचार से में एक केंसर हूँ..?? आपका आरोप हें की मेने दुसरे विद्वानों के लेख अपने नाम से लगवाये हे(छपवायें  हें.).तो सच आपको भी पता हे न...आपका सवागत हे..आप चुप नहीं रहना चाहते हें  तो आइये न...आमने-सामने...
मित्र वेसे भी इस समय आपकी जन्मकुंडली में केतु की महादशा चल रही हें..आप विवाह को लेकर परेशान हें और सिगरेट आप छोड़ना     नहीं चाहते हें ..मेने आपको पूर्व में भी कितना अनुरोध किया/समझाया..खेर जीवन आपका अपना हें..मेरे मित्र सुधांशु निर्भय जी का जन्म---तीन मई उन्नीस सो उन्सित्तर (03 -05 -1979 ) को सुबह दस बजकर पच्चीस  मिनट(10 -25 ) पर हुआ था सोरों(उत्तर प्रदेश में) ..आगरा/ मथुरा/अलीगढ के बीच में..
सुधांशु आप मुझे क्षमा कीजियेगा...इस प्रकार की चर्च/ बतों के लिए...आपके आरोपों का जवाब मेने इसी स्थान पर देना ठीक /उचित समझा...???? ठीक किया न...आपका नारद  मित्र...पंडित दयानंद शास्त्री...  

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