कब करता हैं मंगल अमंगल ????
विवाह एक आवश्यक संस्कार हैं जिससे मानव को चारों पुरूषार्थो की प्राप्ति होती हैं लेकिन जब जातक का विवाह समय पर सम्पन्न नहीं होता। दाम्पत्य जीवन में तनाव रहता हैं तो मंगल दोष का प्रभाव मानते हैं। अष्टक वर्ग में शनि व मंगल दोनों को 39 शुभ बिन्दू प्राप्त हैं अर्थात मंगल व शनि दोनों समान दोषी हैं। लेकिन आर्थिक स्तर बिगड़ने पर शनि का प्रभाव एवं दाम्पत्य सम्बन्धी प्रभाव अशुभ रहे तो मंगल दोष माना जाता हैं। विवाह में विलम्ब जीवन साथी से अनावश्यक कलह, दुर्घटना, तलाक आदि को मंगल दोष का कारण मानते हैं। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने मंगल दोष की इतनी अधिक चर्चा नहीं की। लेकिन आज अधिकांश जन जिन्हें ज्योतिष का सामान्य ज्ञान हैं। कुण्डली देखकर कह देते हैं कि जातक मंगली हैं या नहीं। लेकिन मंगल कुछ विशेष परिस्थितियों के होने पर अमंगल करता हैं।
कुण्डली में लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम व द्वादश भाव में मंगल स्थित होना मंगल दोष माना जाता हैं। किसी पाप ग्रह की स्थिति से ज्यादा उसकी दृष्टि भी विशेष स्थिति में हानिकारक होती हैं। इस प्रकार कुण्डली में मंगल दोष बन रहा हो एवं लग्न, लग्नेश, सप्तम, सप्तमेश पर स्वगृही दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसा मंगल अनिष्ठ ज्यादा करता हैं। अर्थात जीवन साथी के काल कवलित का कारण बनता हैं तो अन्य दृष्टि इन कारकों पर हो तो जीवन साथी से अनबन होकर तलाक भी करवा देता हैं। मंगल दुष्ट दृष्टि वाला, पिताधिक्य वाला, लाल आँखों वाला, तमोगुणी, क्रूर, उग्रबुद्धि, हिसंक, साहसी बनाता हैं। मंगल का प्रभाव जैसा कुण्डली में उसी अनुसार जातक को परिवर्तित करता हैं। यदि वाणी भाव भावेश पर ऐसा प्रभाव हो तो वाणी में क्रूरता के कारण चतुर्थ पर प्रभाव से पारिवारिक सुख या जीवन साथी का माता से व्यवहार के कारण कलह, सप्तम पर प्रभाव जीवन साथी को उग्र, आक्रामक एवं अष्टम पर प्रभाव जीवन साथी की मृत्यु का कारण होता हैं। द्वादश में उपस्थित हो तो शयन सुख में कमी करवाकर अनबन कराता हैं।
कुण्डली में मंगल दोष भी बन रहा हो एवं इसके साथ सप्तमेश सप्तमक कारक व सप्तम भाव पर भी पापगृहों का प्रभाव अधिक हो तो, ये तीनों कारक पाप कर्नरी प्रभाव में, तीनों कारक नीच राशि, अस्तगत, शत्रुक्षैत्री, हीनबली या षडवर्ग बलहीन हो तो मंगल दोष का प्रभाव भी अधिक रहता हैं। अतः इस स्थिति में मंगल प्रभाव जरूर दिखाता हैं। लेकिन इन सभी कारक गृहों के शुभ स्थिति में होने पर जातक का अशुभ अधिक नहीं रहता। पति-पत्नी में हमेशा टकराहट होने पर भी किसी विशेष बात पर एकमत होते हैं। अर्थात उनकी जीवन नैया पार हो जाती हैं। यदि लग्न कुण्डली में मंगल दोष बन रहा हैं एवं नवांश कुण्डली में सप्तम भाव की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं हैं तो इस स्थिति में मंगल अपना अशुभ प्रभाव भी ज्यादा दिखाता हैं लेकिन विपरित होने पर अशुभता में कमी रहती हैं। क्योंकि जन्मांग बीज रूप हैं तो नवांश फल रूप। दाम्पत्य जीवन में मन व प्रेम की विशेष भूमिका रहती हैं। यदि मंगल दोष विद्यमान हो लेकिन अपने मन को नियंत्रित कर जीवन साथी से प्रेम भाव बढ़ा दिया जावे तो दाम्पत्य जीवन अच्छा रहता हैं। लेकिन प्रतिरोध की स्थित अशुभ ही करती हैं। अतः मन के कारक चंद्र व शुक्र जो प्रेम कारक हैं से भी मंगल दोष बन रहा हो तो जातक अपने अंह स्वभाव, जिद्दिपन एव जीवनसाथी से प्रेम की कमी, घृणा के कारण मंगल दोष अपना प्रभाव अवश्य दिखाता हैं।
पं0 दयानन्द शास्त्री
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,
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