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बुधवार, अगस्त 10, 2011

हस्तरेखा में अंगूठे की जानकारी और महत्त्व-


हस्तरेखा में अंगूठे की जानकारी और महत्त्व-


अंगूठे से होती है व्यक्तित्व की पहचान---


अगूठा मानव स्वभाव और उसकी मानसिक भावनाओं के समझने में उतना ही उपयोगी है जितनी मुहँ के लिए नाक। महाभारत में प्रसिद्ध है कि अर्जुन की अलौकिक प्रतिष्ठा की सुरक्षा के लिए गुरूदेव द्रोणाचार्य को अपने एकलव्य नामक शिष्य से गुरूदक्षिणा में मानसिक शक्ति का प्रेरक तथा इच्छा, विचार और प्रेम- तीनों का आश्रयभाग अंगुष्ठ मांगना पढ़ा था। इसी से सिद्ध होता है कि वास्तव में हाथ में अंगूठा कितना उपयोगी है। इसके द्वारा हमें मनुष्य की मानसिक शक्ति या उसकी निर्बलता का विशेष पता चल जाता है। नवजात बालक जब तक अपनी इच्छाशक्ति का उपयोग करने योग्य नहीं होता तब तक वह अपना अंगूठा अंगुलियों से मुðी में छिपाये रखता है। जैसे-जैसे उसकी इच्छा शक्ति प्रबल होती है वैसे ही वैसे वह उसे अंगुलियों के बाहर रखने और मुँह में लेने लगता है। 
प्रायः बहुत से बालक पैर का अंगूठा सदैव मुँह में डाला करते हैं। तब हम व्यवहार में कहा भी करते हैं कि बड़ा पराक्रमी और भाग्यवान् होगा। इससे अंगूठे का महत्व स्पष्ट है। मिर्गी के रोगी को जब दौरे का आक्रमण होता है तब वह अपनी मुðी को बन्द करते समय अंगूठे को भीतर छिपा लेता है। इसी प्रकार जब कोई तार्किक, किसी विषय का विचार या निर्णय करने लगता है तब प्रायः वह सर्व अंगुलियों को भीतर दबाकर सर्वोपरि अंगूठा रखता है। यह मनुष्य की आन्तरिक विचारशक्ति की उद्बुद्धता-अनुद्बुद्धता की जाग्रत सूचिका-पट्टिका
ही है। कारण, विचार के समय जहाँ उसका अंगूठा ऊपर रहता है वहीं क्रोध के समय विचारशक्ति नष्ट हाने पर वह मुðी में बन्द रहता है- क्रुद्ध होने पर लोग प्रायः मुðी बांध लेते हैं। अंगूठा मानवीय अंतःकरण में स्थित इच्छाशक्ति और निग्रहशक्ति का द्योतक है। इनका जबतक शरीर या मन पर अधिकार रहेगा, अंगूठा कभी अन्य अंगुलियों के भीतर दब या छिपकर न रहेगा। और इस लिए कहावत प्रसिद्ध है ‘उसने उसे अंगूठा दिखा दिया।’ अर्थात् वह उससे फँसा या उसके धोखे में नहीं आया।
इसी तरह जब कभी शांति और आनन्द से स्त्री-बच्चों के साथ बैठने पर दो बालकों में किसी एक को पराजित कराना हो तो आपके मुँह से यही वाक्य बालक को आदेश के रूप में मिलता है कि ‘‘नाना अपनी बहिन को सिटिया (अंगूठा) तो बता दे’’ स्वयं प्रेम में आकर भी हम बच्चों से हास्यविनोद अंगूठा बताकर ही करते हैं।
किसी बात की स्वीकृति के लिए उसके साक्षर न होने पर अंगूठा ही कराया जाता है। अंगूठे की छाप से मनुष्य के स्वभाव और आचरण का पता चलता है। इसी कारण पुलिसविभाग में इसका बड़ा महत्व है। कुशल गुप्तचर
विशेषज्ञ किसी का अंगूठा मिल जाने पर उसकी आकृति, स्वभाव और चरित्र का चित्र खींच लेता है। किसी व्यक्ति को किसी कला में प्रवीण होने का प्रमाणपत्र (लाइसेन्स) लेते समय या महत्वपूर्ण दस्तावेज तैयार करते समय हस्ताक्षर के साथ अंगूठे की छाप भी अवश्य देनी होती है। हिन्दु धर्मशास्त्रों में तो अंगूठे का लोकोत्तर महत्त्व है। इसी के द्वारा गुरूशिष्य को या ऋत्विज यजमान को तथा मानव स्वयं को नित्यप्रति स्नान के पश्चात् प्रथम तिलक करता है।
जिस तरह प्रत्येक मांगलिक कार्य में या देवताओं को तिलक लगाने के लिए सूर्यांगुलि (अनामिका) का प्रयोग किया जाता है। उसी तरह बहिन भाई को, रण में जाते समय पत्नी-पति को, उपनयन और विवाह, या सभी संस्कारों में प्रथम अंगुष्ठ का ही प्रयोग होता है और भी कई स्थलों पर अंगुष्ठ का अपूर्व महत्व है।
बहुत से शरीर विज्ञान के विद्वानों का कहना है कि एक विशेष नाड़ी द्वारा अंगूठा और मस्तिष्क का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है। नाड़ी-विशेषज्ञ यह भलीभांति जानते हैं कि हमारे मस्तिष्क में एक ऐसा स्थान है जिसे अंगुष्ठ-भाग कहते हं जहां से सारे शरीर के अंगों को कार्यसंचालन की आज्ञा प्राप्त होती है। उसी स्थान पर या मस्तिष्क के इस अंगुष्ठ-भाग पर यदि किसी कारण अधिक या अनावश्यक दबाव पढे़ तो एक विशेष प्रकार का कंपन पैदा होने लगता है और नाखून से सम्बन्ध रखनेवाला अंगूठे का ऊपर का भाग बढ़ने लगता है जो हमें भाविरोग की सर्वप्रथम सूचना देता है।
अंगूठे के दो मुख्य भेद- मनुष्य का अंगूठा दो प्रकार का होता है- एक सीधा, सुदृढ़ और दूसरा कोमल, झुका हुआ। जिसके हाथ का अंगूठा सीधा और सुदृढ़ हो, वह कोमल और झुके अंगूठे वाले से अधिक स्वेच्छाचारी और हठी होता है।
इसी तरह कोमल और झुका अंगूठा मानव के स्वभाव में अस्थिरता प्रदर्शित करता है। प्रत्येक हाथ में अंगूठा दो जगह से मुड़ा होता है-
1. अंगूठे के नाखून से संबद्ध पहले जोड़ से।
2. उसके नीचे दूसरे जोड़ से ।
जिसका अंगूठा पहले जोड़ पर मुड़ा हों वह प्रायः दूसरों के कहने में आ जाता है। वह दृढ़ विश्वास और विचारों का नहीं होता, दूसरों के लाभ के लिए स्वयं ही हानी उठाता और अपना अपव्यय कर बैठता है। स्पष्ट है कि ऐसे लोगों से किसी का उपकार भी हो जाता है तो वह परोपकार की दृष्टि से नहीं, वरन् दुसरे के कहने में आकर ही। अतएव उन्हें सरलता से धोखे में डाल ठग लिया जा सकता है। किन्तु इसके विपरीत यदि दूसरे जोड़ पर वह झुका हो तो मानव समय और परिस्थिति की अनुकूलता प्रतिकूलता देखकर ही अपने विचार बदलता है, किसी के कहने में नहीं आता।
स्पष्ट है कि ऐसे व्यक्ति को सरलता से धोखे में डाल ठग लेना संभव नहीं होता। विशेष कर यह रूपये-पैसे के मामले में बड़ी ही सावधानी और रूखेपन से पेश आता है।


अंगूठे के तीन भाग---
अंगुलियों की तरह अंगूठे के भी तीन भाग हैं-
1. ऊपर से नीचे की ओर मस्तक या ऊपरी भाग।
2. मध्य भाग।
3. नीचे वाला भाग।


इन तीनों में से प्रत्येक भाग मनुष्य की निम्नलिखित मुख्य तीन मानसिक शक्तियों का केन्द्रस्थान माना गया है। ऊपरी भाग इच्छाशक्ति ;ॅपसस चवूमतद्ध, मध्य भाग विचार शक्ति ;स्वहपब चवूमतद्ध और नीचे वाला भाग प्रेमशक्ति ;स्वअम चवूमतद्ध का केन्द्र है। 
ऊपरी भाग भाग- जैसा की पहले बताया जा चुका है कि ऊपरी भाग इच्छा शक्ति का केन्द्र है। यह मध्य-भाग से अधिक बड़ा न होना चाहिए, क्योकि वैसी स्थिति में मनुष्य की विचारशक्ति, स्वेच्छाचरण की ओर प्रबल रूप में मुड़ती है। वह अधिक बोलने वाला, हठी, निर्दयी और दूसरों से व्यर्थ का झगड़ा करने वाला होता है। इस ऊपरी भाग के छोटे होने से व्यक्ति निर्बल विचारधारा का हो जाता है उसे अपनी शक्ति पर विश्वास नहीं होता। वह चंचल होता है, दृढ़ प्रतिज्ञ नहीं होता।सारांश यह है कि- अंगूठा जितना छोटा और संकुचित होगा
मनुष्य भी उतना ही अधिक अस्थिर स्वभाव वाला या चंचल होगा। एतदर्थ साधारणतः अंगूठे का ऊपरी भाग सुन्दर और सम होना चाहिये, तभी वह श्रेष्ठ या शुभप्रद हो सकेगा।
उसका ऊपर से नोकदार या वर्गाकार होना ठीक नहीं। 
  
मध्य भाग भाग- जिसके हाथ के अंगूठे का मध्य भाग और ऊपरी भाग दोनों समान हों वह उत्तम समझा जाता है, क्योंकि ऐसी स्थिति में मनुष्य स्वेच्छाचारी होने के साथ ही विचारशील भी होता है तथा इच्छा शक्ति प्रबल होने से प्रायः सभी कार्यों में सफल भी होता है, यदि किसी का प्रेम उसके मार्ग में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न करे।
यदि अंगूठे का मध्य भाग ऊपरी भाग से अधिक बड़ा हो तो उस व्यक्ति की विचार शक्ति उसकी इच्छाशक्ति से अधिक प्रबल होती है। फल यह होता है कि जिस समय उसकी इच्छाशक्ति उसे कोई कार्य करने के लिए आगे बढ़ाती है, उसकी विचार शक्ति उसे किसी निश्चय पर नहीं पहुँचने देती। ऐसी दशा में वह किसी भी कार्य को पूरा नहीं कर पाता।
नीचे का भाग भाग- हाथ के अंगूठे का नीचे का भाग, जिसका स्वामी शुक्र ग्रह है, प्रेम का स्थान है और उसी को हम शुक्रक्षेत्र ;डवनदज व िटमदनेद्ध कहते हैं। मनुष्य के स्वभाव पर शुक्र का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है-
इसी के प्रभाव से वह गाने-बजाने या नृत्यादि में मग्न रहता है। उसे सदा सभी का प्रेमपात्र बनने की इच्छा बनी रहती है। तथा वह व्याकुल व असन्तुष्ट रहता है। शुक्रस्थान के छोटे या बड़े हाने पर ही मानव स्वभाव में समता या विषमता का होता निर्भर है। यदि अंगूठे का ऊपर का भाग छोटा और कमजोर हो तो मनुष्य प्रेम अवश्य करता है पर उसकी इच्छाशक्ति उतनी प्रबल नहीं होती। वह मनोरंजन करने में अधिक रूची रखता है। आवश्यकता पड़ने पर ही अपना पक्ष सिद्ध करने के लिए तर्कशक्ति से काम लेता है। यदि अंगूठा छोटा और साथ ही चैड़ा भी हो तो मनुष्य हठी होने के कारण प्रायः अपने कार्यों में धोखा खाता है। वह पक्षपाती
भी होता है। वह अपने असत्य पक्ष की पुष्टि के लिए बहस और हठ करता या लड़ भी बैठता है।
जिसके हाथ का अंगूठा बीच में पतला हो वह वाद-विवाद कम करता है और बुद्धिमान भी होता है। यदि अंगूठे का मध्यभाग पतला और लम्बा हो तो साधारण स्वभाव वाला होने से अपना कार्य ठीक प्रकार सोच-समझ कर करता है।
किन्तु यदि उसके हाथ में शुक्रस्थान, जो प्रेम या अनुराग का स्थान है, बड़ा हो तो वह अपना कैसा भी विचार बड़ों के कहने से त्याग देता है। फिर भी वह उन साधारण, प्रेमरहित या विरोधियों की बात कभी नहीं मानता और हठ कर बैठता है। किसी कारण अपना पक्ष सिद्ध न कर पाने पर वह यहां तक की वह क्रोधी भी हो जाता है कि अपशब्द तक प्रयोग कर बैठता है।
यदि किसी का अंगूठा ऊपर सिरे पर बड़ा और चैड़ा हो तो वह हठी, असभ्य, क्रोधी और निर्दयी होता है।
किन्तु यदि हाथ में कोई ग्रहस्थान उच्च हो तो उसके ये दोष उतने उग्र न रहकर कुछ कम पड़ जाते हैं। यदि हाथ में शुक्रक्षेत्र उच्च हो तो उसकी वासनाएँ अधिक प्रबल होती हैं। साथ् ही यदि चन्द्रक्षेत्र भी उच्च हो तो पहले की अपेक्षा उसके स्वभाव में कुछ समता अधिक आ जाती है। ग्रह-क्षेत्र साधारण आकार का होना सर्वोत्तम माना गया है। वह प्रत्येक दशा में श्रेष्ठ समझा गया है। किन्तु उसमें प्रेम उत्कृष्ट होता है। वह कभी उग्र नहीं होता। यदि यह क्षेत्र बहुत ही छोटा या बिलकुल ही लुप्त हो तो वह व्यक्ति प्रेम भाव से शून्य, हृदयहीन और स्वार्थी होता है। वह प्रायः गम्भीर रहा करता है। अपने सगे-सम्बन्धीयों और इष्टमित्रों के साथ भी उसका
प्रेम और सहानुभूति नहीं होती। 


आगामी पृष्ठ पर एक चक्र द्वारा अंगूठे के भेद और उनके फल को समझाया गया है-
  
अंगूठे के भेद फल--
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1. लम्बा और बुद्धिमान, चतुर, समान आकार वाला- कार्यकुशल।
2. छोटा, मोटा और कुरूप- मूर्ख, क्रोधी, कार्यनाशकत्र्ता।
3. अधिक नोकदार- अस्थिर, तीक्ष्ण स्वभाव, चंचल प्रकृति।
4. वर्गाकार, सिरे पर मोटा- हठी, स्वेच्छाचारी।
5. बीच में पतला- निर्मल विचार शक्ति वाला, दूरदर्शी।
6. मध्यभाग मोटा, जोड़ भद्दा- अदूरदर्शी, अविवेकी, भद्दे विचार वाला।
7. ऊपरी भाग अधिक पतला- निर्बल इच्छाशक्ति वाला
8. ऊपरी भाग अधिक मोटा- धूर्त, हठी, निर्दयी, झगड़ालू।
9. ऊपरी भाग अधिक- अत्यन्त क्रोधी, मोटा, सिरे पर गोल निर्दयी, झगड़ालू, व चैड़ा- भयंकर। 

अक्सर आपने किसी का उत्साह बढ़ाने के लिए अपनी हथेली की चारों उंगलियों को मोड़ कर अंगूठा ऊपर की ओर दिखाया होगा या किसी और को ऐसा करते देखा होगा। वास्तव में इसके पीछे एक बड़ा तथ्य यह है कि अंगूठा हमारी पूरी हथेली का प्रतिनिधित्व करता है और यह इच्छा शक्ति एवं मन को बल प्रदान प्रदान करता है। हस्तरेखा शास्त्र यानी पामिस्ट्री में तो अंगूठे के हर पोर का विशेष महत्व है।
हस्तरेखीय ज्योतिष अंगूठे को ज्ञान का पिटारा कहता है जिसके हरेक पोर में व्यक्ति के विषय में काफी रहस्य छुपा होता है। इस पिटारे की एक मात्र चाभी है हस्त रेखा विज्ञान का सूक्ष्म ज्ञान अर्थात जिसने हस्तरेखा विज्ञान का सूक्ष्मता से अध्ययन किया है वह इस पर लगा ताला खोल सकता है। आप भी अगर हस्तरेखा विज्ञान को गहराई से समझने के इच्छुक हैं तो आपको भी अंगूठे पर दृष्टि जमानी होगी अन्यथा इस शास्त्र में आप कच्चे रह जाएंगे अर्थात "अंगूठा टेक" ही रह जाएंगे।

अंगूठे के विषय में जानकारी हासिल करने के लिए सबसे पहले तो आप अपना अंगूठा गौर से देखिये, आप देखेंगे कि अंगूठा हड्डियों के दो टुकड़ों से मिलकर बना है और अन्य उंगलियो की तरह इसके भी तीन पर्व यानी पोर हैं। इसके तीनों ही पर्व व्यक्ति के विषय में अलग अलग कहानी कहती है।

अंगूठे का पहला पर्व (First Part of the Thumb):
सामुद्रिक ज्योतिष के अनुसार जिस व्यक्ति के अंगूठे का पहला पर्व लम्बा होता है वह व्यक्ति आत्मविश्वास से भरा होता है और अपना जीवन पथ स्वयं बनता है। ये आत्मनिर्भरता में यकीन करते हैं और सजग रहते हैं। हथेली का पहला पर्व लम्बा हो यह तो अच्छा है लेकिन अगर यह बहुत अधिक लम्बा है तो यह समझ लीजिए कि व्यक्ति असामाजिक गतिविधियों को अंजाम देने वाला है, यह खतरनाक काम कर सकता है। दूसरी ओर जिस व्यक्ति के अंगूठे का पहला पर्व छोटा होता है वह दूसरों पर निर्भर रहते हैं और जिम्मेवारी भरा निर्णय नहीं ले पाते हैं। ये काम को गंभीरता से नहीं लेते हैं। पहला पर्व अगर चौड़ा है तो समझ लीजिए यह व्यक्ति मनमानी करने वाला अर्थात जिद्दी है। जिनका पहला पर्व लगभग समकोण जैसा दिखता हो उनके साथ होशियारी से पेश आने की जरूरत होती है क्योंकि ये काफी चालाक और तेज मस्तिष्क वाले होते हैं।

अंगूठे का दूसरा पर्व (Second Part of the Thumb):
अंगूठे का दूसरा भाग लम्बा होना बताता है कि व्यक्ति चालाक और सजग है (People whose Second Phalange is long are cautious and cunning)। यह व्यक्ति सामाजिक कार्यों एवं जनसेवा के कार्यों में सक्रिय रहने वाला है। दूसरा पूर्व जिनका छोटा होता है वे बिना आगे पीछे सोचे काम करने वाले होते हैं परिणाम की चिंता नहीं करते यही कारण है कि ये ऐसा काम कर बैठते हैं जो जोखिम और खतरों से भरा होता है। दूसरा पर्व अंगूठे का दबा हुआ है तो यह बताता है कि व्यक्ति गंभीर और संवेदशील है और इनकी मानसिक क्षमता अच्छी है।

अंगूठे का तीसरा पर्व (Third Part of the Thumb):
अंगूठे का तीसरा पर्व वास्तव में शुक्र पर्वत का स्थान होता है जिसे व्यक्ति विश्लेषण के समय अंगूठे के तीसरे पर्व के रूप में लिया जाता है (Mount of the Venus is located on the third phalange of the thumb)। यह पर्व अगर अच्छी तरह उभरा हुआ है और गुलाबी आभा से दमक रहा है तो यह मानना चाहिए कि व्यक्ति प्यार और रोमांस में काफी सक्रिय है। इस स्थिति में व्यक्ति जीवन के कठिन समय को भी हंसते मुस्कुराते गुजराना जानता है। यह पर्व अगर सामान्य से अधिक उभरा हुआ है तो यह जानना चाहिए कि व्यक्ति में काम की भावना प्रबल है यह इसके लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है। अंगूठे का तीसरा पर्व अगर सामन्य रूप से उभरा नहीं है और सपाट है तो यह कहना चाहिए कि व्यक्ति प्रेम और उत्साह से रहित है।

उम्मीद है आप अंगूठे की महिमा पूरी तरह समझ चुके होंगे, तो अब से अंगूठे को गौर से देखिए और व्यक्ति को पहचानिए।
काफी पढ़े लिखे व्यक्ति को भी कई स्थानों पर अंगूठा लगाते हुए आपने देखा होगा। वास्तव में हमारी हथेली में अंगूठे का बहुत अधिक महत्व है, देखा जाय तो यह उंगलियों में राजा होता है। हस्तरेखा विशेषज्ञ तो यहां तक मानते है कि केवल अंगूठे को देखकर भी किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व और जीवन के बारे में बताया जा सकता है।
अंगूठे का प्रभाव और महत्व क्या है इस विषय पर चर्चा करने से पहले आवश्यक हो जाता है कि हम यह जानें कि अंगूठा कितने प्रकार का होता है। हस्तरेखा विज्ञान के जानकार बताते हैं कि जिस प्रकार हस्तरेखा सभी मनुष्य की अलग अलग होती है उसी प्रकार अंगूठे की संरचना, आकार, रंग एवं इनके पोर्स में भी अंतर होता है। अंगूठे के आकार प्रकार और संरचना से भी व्यक्तित्व पर काफी प्रभाव पड़ता है। तो आइये सबसे पहले हम जानें कि किसी के अंगूठे को देखकर उसका व्यक्तित्व हम कैसे समझ सकते हैं।

लम्बा अंगूठा (Lanky Thumb): अगर आपके पास कोई व्यक्ति आता है जिसका अंगूठा लम्बा है तो उसके व्यक्ति के विषय में आप यह समझ सकते हैं कि इस व्यक्ति का मस्तिष्क यानी दिमाग काफी तेज चलता है। यह व्यक्ति अपनी बुद्धि से दुनियां में अपना मुकाम बनाने की योग्यता रखता है। लम्बा अंगूठा यह भी बयां करता है कि व्यक्ति अपने आप पर भरोसा करता है और अपनी क्षमता एवं गुणों से आगे बढ़ने का साहस रखता है, एक शब्द में कहें तो यह व्यक्ति का आत्मनिर्भर होना इंगित करता है। जिनका अंगूठा लम्बा होता है वे अपने आस पास के लोगों पर अपना प्रभाव बनाये रखने के इच्छुक होते हैं ये गणित और तकनिकी क्षेत्र में रूचि रखते हैं।

छोटा अंगूठा (Short Thumb): आप किसी व्यक्ति की हस्त रेखा देखकर उसके बारे में जब बता रहे हों तब यह गौर करना चाहिए कि उस व्यक्ति का अंगूठा छोटा तो नहीं है। अगर अंगूठा छोटा है तो आप कह सकते हैं कि व्यक्ति भावुक है। इस व्यक्ति के बारे में आप कह सकते हैं कि यह दिमाग से कम दिल से अधिक काम लेने वाला है अर्थात इनका निर्णय बुद्धिपरक नहीं वरन भावना परक होता है। यह व्यक्ति स्वतंत्र निर्णय लेने में अक्षम रहता है यह दूसरों के विचारों और सुझावों को मानकर कोई भी महत्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाता है। आप इस व्यक्ति से यह भी कह सकते हैं कि आप संगीत, चित्रकला, लेखन, कविता, एवं दूसरे कलात्मक विषयों के प्रति लगाव रखते हैं।

कड़ा अंगूठा (Hard Thumb):  हस्तरेखीय ज्योतिष कहता है, जब आप हाथ देखकर फल कथन करते हैं तब उस समय अंगूठे का विश्लेषण जरूर करना चाहिए। अंगूठा अगर सख्त या कड़ा लगे तो आप समझ सकते हैं कि जिस व्यक्ति का आप हाथ देख रहे हैं वह आपने प्रति यानी अपने हित के प्रति काफी सजग और सतर्क है और यह जो भी ठान लेगा वही करने वाला है यानी कह सकते हैं कि यह व्यक्ति जिद्दी है। यह व्यक्ति अपने व्यवहार में भावुकता तो लाना चाहता है परंतु ऐसा कर नहीं पाता है और अपने हित साधना में अच्छी तरह सोच कर कोई भी निर्णय लेता है और भावुकता को मस्तिष्क पर हावी नहीं होने देता।

कोमल और मुलायम अंगूठा (Soft Thumb): अंगूठे से व्यक्तित्व की विशेषता का आंकलन करते हुए जब हम किसी कोमल और मुलायम अंगूठे को देखते हैं तब उसके बारे में कह सकते हैं कि यह व्यक्ति परिस्थितियों के साथ बेहतर तालमेल बनाना जानता है। यह व्यक्ति मुश्किल हालातों में भी मुस्कुराने की कला से वाकिफ है। इस व्यक्ति के बारे में हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यह भी कह सकते हैं कि यह अधिक से अधिक धन जमा करने का इच्छुक है, यह जानता है कि पैसा किस प्रकार बचाया जा सकता है।

आदर्श अंगूठा (Ideal Thumb): अगर किसी के अंगूठे का निरिक्षण करते हुए हम पाते हैं कि अमुक व्यक्ति का अंगूठा तर्जनी उंगली से अधिकोण बना रहा है अर्थात अंगूठा कलाई की ओर अधिक झुका हुआ है तो इस अंगूठे को आदर्श अंगूठा कहेंगे। यह अंगूठा तर्जनी से 90 से 180 डिग्री0 तक झुका होता है व लम्बा एवं पतला होता है। जिस व्यक्ति का अंगूठा ऐसा होता है उस व्यक्ति के विषय में यह कहा जा सकता है कि वे शांत प्रकृति के हैं, किसी भी स्थिति में अपने आप पर नियंत्रण रखते हैं व जल्दी क्रोध एवं आवेश में नहीं आते हैं। आमतौर पर जिनका अंगूठा ऐसा होता है वे कलाप्रेमी होते हैं।

सीधा अंगूठा(Straight Thumb): खम्भे की तरह सीधा अंगूठा जो तर्जनी उंगली से बिल्कुल 90 डिग्री का कोण बनता है उसे इस श्रेणी में रखा जाता है। सीधा अंगूठा मजबूत और गठीला प्रतीत होता है। इस प्रकार का अंगूठा जिनकी हथेली पर आप पाते हैं उनके विषय में कह सकते हैं कि ये काफी मेहनती हैं और मेहनत को ही अपना भगवान मानते हैं। जिनका अंगूठा ऐसा होता है उनके विषय में सामुद्रिक शास्त्र कहता है कि इनकी न तो दोस्ती भल है और न तो दुश्मनी इसलिए इनसे निश्चित दूरी बनाए रखना ही अच्छा है। ये छोटी छोटी बातों पर आवेश में आ जाते हैं और आवेश में बदले की भावना से दूध में आये उबाल की तरह उबलने लगते हैं परंतु कुछ ही पल में शांत हो जाते हैं।

न्यून अंगूठा(Acute Thumb): अंगूठे का एक प्रकार न्यून अंगूठा है। इस प्रकार के अंगूठे को न्यून अंगूठा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह तर्जनी उंगली की ओर झुका होता है और न्यूनकोण बनाता है अर्थात यह 90 डिग्री से कम होता है। इस अंगूठे का आकार सामान्य से कम और दिखने में बेडौल होता है। इस प्रकार का अंगूठा देखकर आप कह सकते हैं कि व्यक्ति के जीवन में निराशा भरा हुआ है यह अपने आप से परेशान और दु:खी रहता है। यह व्यक्ति अपने आलस्य के कारण कोई भी काम वक्त पर नहीं कर पाता है। जीवन में निराशा और असफलता के कारण ये असामाजिक तत्वों से निकटता कायम कर सकते हैं। परायी स्त्री के प्रति ये आकर्षित रहते हैं और निरर्थक बातों में अपना कीमती वक्त बर्बाद करते हैं। हस्तरेखीय ज्योतिष के अनुसार जिनकी हथेली में ऐसा अंगूठा होता है वे ईश्वर और धार्मिक गतिविधियों में कम रूचि लेते हैं और टोने टोटके, भूत, पिशाच, तंत्र-मंत्र, जादू के पीछे अपने दिमाग का घोड़ा दौड़ाते हैं।



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