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गुरुवार, अगस्त 11, 2011

ज्योतिष और आध्यात्म विज्ञानं का सम्बन्ध---(ज्‍योतिष अर्थात अध्यात्म)

ज्योतिष और आध्यात्म  विज्ञानं का सम्बन्ध---(ज्‍योतिष अर्थात अध्यात्म)




जगत में न मालूम कितनी घ्‍वनियां है जो चारों तरफ हमारे गुजर रही है। भंयकर कोला हाल है—वह पूरा कोलाहल हमें सुनाई नहीं पड़ता, लेकिन उससे हम प्रभावित तो होते हे। ध्‍यान रहे, वह हमें सुनाई नहीं पड़ता, लेकिन उससे हम प्रभावित तो होते हे। वह हमारे रोएं-रोएं को स्‍पर्श करता है। हमारे ह्रदय की धड़कन-धड़कन को छूता है। हमारे स्‍नायु-स्‍नायु को कंपा जाता है। वह अपना काम तो कर ही रहा है। उसका काम तो जारी है। जिस सुगंध को आप नहीं सूंघ पाते उसके अणु आपके चारों तरफ अपना काम तो कर ही जाते हे। और अगर उसके अणु किसी बीमारी को लाए है तो आप को दे जाते है। आपकी जानकारी आवश्‍यक नहीं है। किसी वस्‍तु के होने के लिए।
ज्‍योतिष का कहना है कि हमारे चारों तरफ ऊर्जाओं के क्षेत्र है, एनर्जी फील्‍डस है और वह पूरे समय हमें प्रभावित कर रहे है। जैसे ही बच्‍चा जन्‍म लेता है तो वह जगत के प्रति, जगत प्रभावों के प्रति फंस जाता है। जन्‍म को वैज्ञानिक भाषा में हम कहें एक्‍सपोजर, जैसे कि फिल्‍म को हम ऐक्सपोज करते है। कैमरे में, जरा सा शटर आप दबाते है एक क्षण के लिए कैमरे की खिड़की खुलती है और बंद हो जाती है। उस क्षण में जो भी कैमरे के समक्ष आ जाता है। वह फिल्‍म पर अंकित हो जाता है। फिल्‍म ऐक्सपोज हो गई। अब दुबारा उस पर कुछ अंकित न होगा—और अब यह फिल्‍म उस आकार को सदा अपने भीतर लिए रहेगी।
जिस दिन मां के पेट में पहली दफा गर्भाधान होता है तो पहला एक्‍सपोजर होता है। जिस दिन मां के पेट से बच्‍चा बाहर आता है, जन्‍म लेता है, उस दिन दूसरा एक्‍सपोजर होता है। और वह दोनों एक्‍पोजर संवेदनशील चित पर फिल्‍म की भांति अंकित हो जाते है। पूरा जगत उस क्षण में बच्‍चा अपने भीतर अंकित कर लेता है। और उसकी एम्‍पेथीज, समानुभूति निर्मित हो जाती है।
ज्‍योतिष इतना ही कहता है कि यदि यह बच्‍चा जब पैदा हुआ है तब अगर राज है…ओर जानकर आप हैरान होंगे की सत्‍तर से लेकर नब्‍बे प्रतिशत बच्‍चे रात में पैदा होते है, यह थोड़ा हैरानी की बात है….क्‍योंकि आमतौर से पचास प्रतिशत होने चाहिए। चौबीस घंटे का हिसाब है, इसमें कोई हिसाब भी न हो,बेहिसाब भी बच्‍चे पैदा हों, तो बारह घंटे रात, बारह घंटे दिन, साधारण संयोग और कांबिनेशन से ठीक है, पचास-पचास प्रतिशत हो जाएं। कभी भूल चूक दो चार प्रतिशत इधर-उधर हो, लेकिन नब्‍बे प्रतिशत तक बच्‍चे रात में जन्‍म लेते है—दस प्रतिशत तक बच्‍चे मुशिकल से दिन में जन्‍म लेते है। अकारण नहीं हो सकती यह बात, इसके पीछे बहुत कारण है।
समझें, एक बच्‍चा रात में जन्‍म लेता है तो उसका जो एक्‍सपोजर है, उसके चित की जो पहली घटना है जगत में अवतरण की वह अंधेरे से संयुक्‍त होती है। प्रकाश से संयुक्‍त नहीं होती। यह तो उदाहरण के लिए कह रहा हूं, क्‍योंकि बात तो और विस्‍तीर्ण है। सिर्फ उदाहरण के लिए कह रहा हूं। उसके चित पर जो पहली घटना है वह अंधकार है। सूर्य अनुपस्‍थित है। सूर्य की ऊर्जा अनुपस्‍थित है। चारों तरफ जगत सोया हुआ है। पौधे अपनी पत्‍तियों को बंद किए हुए है। पक्षी अपने पंखों को सिकोड़कर आंखे बंद किए हुए अपने घोंसलों में छिप गए है। सारी पृथ्‍वी पर निद्रा है। हवा के कण-कण में चारों तरफ नींद है। सब सोया हुआ है। जागा हुआ कुछ भी नहीं है। वह पहला इम्‍पेक्‍ट है बच्‍चे पर।
अगर हम बुद्ध और महावीर से पूँछें तो वह कहेंगे कि अधिक बच्‍चे इसलिए रात में जन्‍म लेते है क्‍योंकि अधिक आत्‍माएं सोयी हुई हे—एस्‍लीप है। दिन को वे नहीं चुन सकते पैदा होने के लिए। दिन को चुनना कठिन है। और हजार कारण है, एक कारण महत्‍वपूर्ण है यह भी—अधिकतम लोग सोये हुए है। अधिकतम लोग तंद्रित है, अधिकतम लोक निद्रा में है। अधिकतम लोग आलस्‍य में प्रमाद में है। सूर्य के जागने के साथ उनका जन्‍म ऊर्जा का जन्‍म होगा,सूर्य के डूबे हुए अंधेरे की आड़ में उनका जन्‍म नींद का जन्‍म होगा। रात में एक बच्‍चा पैदा हो रहा है तो एक्‍सपोजर एक तरह का होने वाला है। जैसे कि हमने अंधेरे में एक फिल्‍म खोली हो या प्रकाश में एक फिल्‍म खोली हो तो एक्‍सपोजर भिन्‍न होने वाले है। एक्सपोजर की बात थोड़ी और समझ लेनी चाहिए क्‍योंकि वह ज्‍योतिष के बहुत गहराइयों से संबंधित है।
जो वैज्ञानिक एक्‍सपोजर के संबंध में खोज करते है वे कहते है कि एक्‍सपोजर की घटना बहुत बड़ी है, वह छोटी घटना नहीं है। क्‍योंकि जिंदगी भर वह आपका पीछा करेगी। हम कहते है कि मां के पीछे भाग रहा है। वैज्ञानिक कहते है, नहीं, मां से कोई संबंध नहीं है। एक्सपोजर का सवाल है। हम कहते, अपनी मां के पीछे भाग रहा है लेकिन वैज्ञानिक कहते है। नहीं, पहले हम भी ऐसे सोचते थे कि मां के पीछे भाग रहा है, लेकिन बात ऐसी नहीं है। और अब सैकड़ों प्रयोग किए गए तो बात स्‍पष्‍ट हो गयी है।
वैज्ञानिकों ने सैकड़ों प्रयोग किए। मुर्गी का बच्‍चा जन्‍म रहा है। अंडा फूट रहा है, चूजा बहार निकल रहा है तो उन्‍होंने मुर्गी को हटा लिया और उसकी जगह एक रबर का गुब्‍बारा रख दिया। बच्‍चे ने जिस चीज को पहली दफा देख वह रबर का गुब्बार था, मां नहीं थी। आप चकित होंगे यह जानकर कि वह एक्‍सपोजर हो गया। इसके बाद वह रबर के गुब्‍बारे को ही मां की तरह प्रेम कर सका । फिर वह अपनी मां को नहीं प्रेम कर सका। रबर का गुब्‍बारा हवा में वह गुब्बार उड़ेगा यह सरकेगा, तो वह पीछे भागेगा। उसकी मां भागती रहेगी तो उसकी फिक्र ही नहीं करेगा। रबर के गुब्‍बारे के प्रति वह आश्चर्य जनक रूप से संवेदनशील हो गया। जब थक जाएगा तो गुब्‍बारे के पास टिककर बैठ जाएगा। गुब्‍बारे को प्रेम की कोशिश करेगा। गुब्‍बारे में चोंच लड़ाने की कोशिश करेगा—लेकिन मां से नहीं।
इस संबंध में बहुत काम लारेंज नाम के वैज्ञानिक ने किया है और उसका कहना है वह जो फ़र्स्ट मूवमेंट ऑफ एक्‍सपोजर है बड़ा महत्‍वपूर्ण है। वह मां से इसलिए संबंधित हो जाता है—मां होने की वजह से नहीं, फ़र्स्ट एक्‍सपोजर की वजह से। इसलिए नहीं कि वह मां है। इसलिए उसके पीछे दौड़ता है; इसलिए कि वह सबसे पहले उसको उपलब्‍ध होती है—इसलिए उसके पीछे दौड़ता है।
अभी इस पर काम चल रहा है। जिन बच्‍चों को मां के पास बड़ा न किया जाए वह किसी स्‍त्री को जीवन में कभी प्रेम करने को समर्थ नहीं हो पाता—एक्‍सपोजर ही नहीं हो पाता। अगर एक बच्‍चे को उसकी मां के पास बड़ा ने किया जाए तो स्‍त्री का जो प्रतिबिंब उसके मन में बनना चाहिए वह बनता ही नहीं। और अगर पश्‍चिम में आज होमोसेक्सुअल टी बढ़ती हुई प्रतीत हो रही है। उसके एक बुनियादी कारणों में वह भी एक कारण है।
हेट्रोसेक्‍सुअल, विजातीय यौन के प्रति जो प्रेम है वह पश्‍चिम में कम होता जा रहा है। और सजातीय यौन के प्रति प्रेम बढ़ता चला जाता है, जो कि विकृति है—लेकिन वह विकृति होगी, क्‍योंकि दूसरे यौन के प्रति जो प्रेम है पुरूष का स्‍त्री के प्रति और स्‍त्री का पुरूष के प्रति वह बहुत सी शर्तों के साथ है। पहला तो एक्‍सपोजर जरूरी है। बच्‍चा पैदा हो तो उसके मन पर क्‍या एक्‍सपोजर हो, अब यह बहुत सोचने जैसी बात है। दुनिया में स्त्रीयां तब तक सुखी न हो पाएंगी जब तक उनका एक्‍सपोजर मां के साथ हो रहा हे। उनका प्रथम एक्‍सपोजर पुरूष के साथ होना चाहिए। पहला इम्पेक्ट लड़की के मन पर पिता का पड़ना चाहिए तो ही वह किसी पुरूष को भरपूर मन से प्रेम करने में समर्थ हो पाएगी । अगर पुरूष स्‍त्री से जीत जाता है तो उसका कुल कारण इतना है कि लड़कियां दोनों ही मां के पास बड़े होते हे।
लड़के को एक्‍सपोजर तो बिलकुल ठीक होता है। स्‍त्री के प्रति, लेकिन लड़की का एक्‍सपोजर बिलकुल ठीक नहीं होता। इसलिए जब तक दुनिया में लड़की को पिता का एक्‍सपोजर नहीं मिलता तब तक स्त्रीयां कभी भी पुरूष के समकक्ष खड़ी नहीं हो सकती है। न राजनीति के द्वारा, न नौकरी के द्वारा, न आर्थिक स्‍वतंत्रता के द्वारा। क्‍योंकि मनोवैज्ञानिक अर्थों में एक कमी उनमें रह जाती है। अब तक की पूरी संस्‍कृति उस कमी को पूरा नहीं कर पायी। अगर एक छोटा सा गुब्बारा मुर्गी के लिए इतना प्रभावी हो जाता है इतना ज्‍यादा कि उनका चित…कि उसका चित सदा के लिए उससे निर्मित हो जाता है। तो ज्‍योतिष कहता है। जो भी चारों तरफ मौजूद है, द होल यूनिवर्स वह सभी का सभी उस प्रथम एक्‍सपोजर के क्षण में, उस चित के खुलने के क्षण में भीतर प्रवेश कर जाता है। और जीवन भर की सिम्‍पैथीज ओर एन्‍टीपैथीज निर्मित हो जाती है। उस क्षण जो नक्षत्र पृथ्‍वी को चारों तरफ से घेरे हुए है वह सभी अनंत अर्थों में चित को संकेत कर जाते है। नक्षत्र घेरे हुए है, उनका कुल मतलब इतना है कि उस क्षण पृथ्‍वी के ऊपर उन नक्षत्रों की रेडियों एक्टिविटी का प्रभाव पड़ रहा है।
अब वैज्ञानिक मानते है कि प्रत्‍येक ग्रह की रेडियो एक्टिविटी अलग हे। जैसे—वीनस, उससे जो रेडियो सक्रिय तत्‍व हमारी तरफ आते है। वह चाँद के रेडियो सक्रिय तत्‍वों से भिन्‍न है। जैसे जुपिटर—उससे जो रेडियो तत्‍व हम तक आते है वह सूर्य से रेडियो तत्‍वों से भिन्‍न है। क्‍योंकि इन प्रत्‍येक ग्रहों के पास अलग तरह की गैसों और अलग तरह के तत्‍वों का वातावरण है। उन सबसे अलग-अलग प्रभाव पृथ्‍वी की तरफ आते है। और जब एक बच्‍चा पैदा हो रहा है तो पृथ्‍वी के चारों तरफ क्षितिज को घेरकर खड़े हुए जो भी नक्षत्र है—ग्रह है, उपग्रह है, दुर आकाश के महा तारे है, वे सब के सब उस एक्‍सपोजर के क्षण में बच्‍चे के चित पर गहराइयों ते प्रवेश कर जाते है। फिरा उसकी कमज़ोरियाँ, उसकी ताक़तें, उसका सामर्थ्‍य सब सदा के लिए प्रभावित हो जाता है।

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