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शनिवार, अगस्त 06, 2011

जन्म कुंडली से वैवाहिक सुख का ज्ञान---


जन्म कुंडली से वैवाहिक सुख का ज्ञान---


विवाह समाज द्वारा स्थापित एक प्राचीनतम परम्परा है जिसका उद्देश्य काम -संबंधों को मर्यादित करके सृष्टि की रचना में सहयोग देना है |सभी पुराणों,शास्त्रों एवम धर्म ग्रंथों में पितरों के ऋण से मुक्त होने के लिए तथा वंश परम्परा की वृद्धि के लिए विवाह की अनिवार्यता पर बल दिया गया है |

जन्म कुंडली से विवाह सुख का विचार

विवाह कब होगा ? विवाह होगा या नहीं ? जीवन -साथी कैसा होगा ? गृहस्थ जीवन कैसा रहेगा ? प्रेम विवाह होगा या पारम्परिक रीति रिवाजों के अनुसार - इत्यादि प्रश्नों का उत्तर हम अपनी जन्म कुंडली से प्राप्त कर सकते हैं |सभी प्राचीन फलित ज्योतिष के ग्रन्थ इस तथ्य पर सहमत हैं की जन्म कुंडली के सप्तम भाव से विवाह एवम गृहस्थ सुख का विचार करना चाहिए |लग्न एवम चन्द्र में जो बलवान हो उससे सप्तम भाव ग्रहण करना चाहिए |

पति /पत्नी के गुण ,स्वभाव व रूप का ज्ञान
सप्तम भाव में जैसा ग्रह स्थित होगा उसके कारक्तव व गुण -स्वभाव के अनुसार ही पति/पत्नी का गुण -रूप व स्वभाव होगा |सप्तम भाव में एक से अधिक ग्रह हों तो उनमे बली ग्रह का प्रभाव होगा | सप्तम भाव ग्रह रहित हो तो सप्तमेश या शुक्र के नवांश पति के अनुसार पति /पत्नी का स्वभाव आदि कहना चाहिए |

योग कारक ग्रह से पति /पत्नीगुण स्वभाव का ज्ञान
सूर्य--- पित्त प्रकृति ,अल्प केश ,नेत्रों में लालिमाचतुरस्र आकृति ,गंभीर ,उर्ध्व दृष्टि ,
उच्चाभिलाषी ,तेजस्वी ,साहसी ,स्पष्ट वक्ता,अंध विश्वास से रहित ,वाणी तथा चाल में गर्वीलापन ,लाल रंग प्रिय, स्वतंत्रता प्रिय तथा अधिक चर्बी से रहित पुष्ट शरीर
चन्द्र ---- वात एवम कफ प्रकृति ,सुंदर नेत्र ,कोमल शरीर ,मृदु स्वभाव ,चेहरे भरा हुआ व गोलाई लिए ,नाक छोटी ,संवेदनशील ,चंचल ,गीत -संगीत -कविता में रूचि ,सोंदर्य प्रियता ,शरीर में कुछ स्थूलता ,भावुकता ,कल्पना शीलता ,स्वपन दर्शिता ,कभी -कभी निराशा का प्रभाव ,नमकीन पदार्थों में रूचि ,श्वेत रंग प्रिय
मंगल ---पित प्रकृति , नेत्रों में लालिमा, क्रोध एवम आतुरता ,गर्व से युक्त वाणी ,ठोडी बड़ी एवम चौरस ,होंठ कुछ मोटे ,हठी स्वभाव ,वाणी में मिठास का अभाव ,लाल रंग अच्छा लगे ,उन्नत मांसपे शिया ,स्थूलता रहित ,चेहरा लंबा एवम तर्कशील
बुध ----सम प्रकृति ,मुख चौडा ,शरीर भारी ,ठोडी ऊपर को उठी हुई ,उन्नत ललाट ,व्यवहारिक, संचय की प्रवृत्ति ,बहुभोजी ,सतर्क ,हरे पदार्थ प्रिय ,गणित एवम वाणिज्य में रूचि,सांवला रंग ,शरीर में नसें दिखाई दें ,हास्य प्रिय ,तिरछी नजर से देखे ,ग्रामचारी ,
गुरु ---कफ प्रकृति ,केश व नेत्रों का रंग भूरा ,लंबा कद मिष्ठान प्रिय , शरीर भारी , गाल पुष्ट उठी हुई नाक धर्मं मैं रुचि ,वाणी में गंभीरता ,उदार , स्वाभिमानी , अनुशासन प्रिय , उन्नत मस्तक ,पढ़ने लिखने मैं रुचि, श्रेष्ठ मति ,पीला रंग अच्छा लगे ,स्वर्ण के समान गौर वर्ण ,चर्बी की अधिकता
शुक्र ---- वात एवम कफ प्रकृति ,श्याम वर्ण ,रंग -बिरंगे वस्त्र धारण करने में रूचि ,केश काले एवम लहरदार ,खट्टे पदार्थों में रूचि ,सुंदर ,सुखाभिलाशी ,मधुर भाषण ,लंबे हाथ ,सुगंध प्रिय
शनि ---- वात प्रकृति ,काला रंग ,लंबा कद ,अधो दृष्टि ,शुष्क त्वचा एवम केश ,अल्प भाषी ,धीमी चाल ,मोटे दांत ,दुबला शरीर ,शरीर में नसें दिखाई दें ,असुंदर ,वाणी में कठोरता ,नेत्रों में पीलापन ,कंजूस
बहुत से विद्वान् जन्म लग्न के नवांशेश से भी पति /पत्नी की प्रकृति की कल्पना करते हैं |

विवाह स्थान का निर्णय
सप्तम भाव में चर राशिः ,नवांश हो तो विवाह सम्बन्ध जनम स्थान से दूर ,स्थिर राशिः ,नवांश हो तो निकट तथा द्वि स्वभाव राशिः-नवांश हो तो मध्यम दूरी पर तय होता है |सप्तम भाव में जो ग्रह स्थित होते हैं उनमे बली ग्रह की दिशा में विवाह होता है |सप्तम भाव में कोई ग्रह न हो तो जो बली ग्रह भाव को देखता है उसकी दिशा में विवाह होता है |कोई ग्रह भी न देख रहा हो तो सप्तम भाव में स्थित राशिः या नवांश राशिः की दिशा में विवाह सम्भव होता है |सप्तमेश की अधिष्ठित राशिः -नवांश की दिशा भी विचारणीय होती है |
सूर्य की दिशा पूर्व ,चन्द्र की वायव्य ,मंगल की दक्षिण ,बुध की उत्तर ,गुरु की ईशान ,शुक्र की आग्नेय ,शनि की पश्चिम तथा राहू की नैऋतव दिशा होती है |मेष ,सिंह ,धनु राशिओं की पूर्व दिशा ,वृष -कन्या - मकर की दक्षिण दिशा ,मिथुन - तुला - कुम्भ की पश्चिम दिशा तथा कर्क -वृश्चिक -मीन की उत्तर दिशा होती है |

गृहस्थ जीवन कैसा होगा ?
सप्तमेश ,सप्तम भाव ,कारक शुक्र तीनों शुभ युक्त ,शुभ दृष्ट ,शुभ राशिः से युक्त हो कर बलवान हों ,सप्तमेश व शुक्र लग्न से केन्द्र -त्रिकोण या लाभ में स्थित हों तो गृहस्थ जीवन पूर्ण रूप से सुखमय होता है |लग्न का नवांशेश जन्म कुंडली में बलवान व शुभ स्थान पर हो तो गृहस्थ जीवन आनंद से व्यतीत होता है | लग्नेश एवम सप्तमेश की मैत्री हो व दोनों एक दूसरे से शुभ स्थान पर हों तो दांपत्य जीवन में कोई बाधा नहीं आती |लग्नेश एवम सप्तमेश का जन्म कुंडली के शुभ भावों में युति या दृष्टि सम्बन्ध हो अथवा दोनों एक - दूसरे के नवांश में हों तो पति -पत्नी का परस्पर प्रगाढ़ प्रेम होता है |
सप्तम भाव में पाप ग्रह हों ,सप्तमेश एवम शुक्र नीच व शत्रु राशिः-नवांश में ,निर्बल ,पाप युक्त व दृष्ट ,६,८,१२वें भाव में स्थित हों तो विवाह में विलंब ,बाधा एवम गृहस्थ जीवन में कष्ट रहता है |लग्नेश एवम सप्तमेश एक दूसरे से ६,८,१२ वें स्थान पर हों तथा परस्पर शत्रु हों तो गृहस्थ जीवन सुखी नहीं रहता | ६,८,१२, वें भावों के स्वामी निर्बल हो कर सप्तम भाव में स्थित हों तो वैवाहिक सुख में बाधा करतें हैं |सप्तम भाव से पहले एवम आगे के भाव में पाप ग्रह स्थित हों तो गृहस्थ जीवन में परेशानियाँ रहती हैं |

विवाह कब होगा ?
सप्तम भाव में स्थित बलि ग्रह की दशा-अन्तर्दशा में विवाह होता है|लग्न अथवा चन्द्र से सप्तमेश ,द्वितीयेश ,इनके नवांशेश ,शुक्र व चन्द्र की दशाएं भी विवाह्कारक होती हैं |सप्तम भाव या सप्तमेश को देखने वाला शुभ ग्रह भी अपनी दशा में विवाह करा सकता है |उपरोक्त दशाओं में सप्तमेश ,लग्नेश ,गुरु एवम विवाह कारक शुक्र का गोचर जब लग्न ,सप्तम भाव या इनसे त्रिकोण में होता है उस समय विवाह का योग बनता है |लग्नेश एवम सप्तमेश के स्पस्ट राशिः -अंशों इत्यादि का योग करें ,प्राप्त राशिः में या इससे त्रिकोण में गुरु का गोचर होने पर विवाह होता है |

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