किस्मत और भाग्य----
किसी ने सत्य ही कहा है कि किस्मत और कुछ नहीं बल्कि कामचोर लोगों का पसंदीदा बहाना है। कुछ लोग होते हैं जो पूरी तरह से भाग्य पर ही निर्भर रहते हैं। न तो वह कभी अपने काम में सुधार लाते हैं और न ही कुछ अलग करने की कोशिश करते हैं। उन्हें हमेशा यही लगता है कि जब जो चीज किस्मत में होगी मिल जाएगी। और यदि किस्मत में नहीं होगी तो नहीं मिलेगी। उनकी यही सोच उन्हें तरक्की नहीं करने देती और वे हर बात के लिए अपनी किस्मत को दोष देते हैं।
एक गांव में दो दोस्त रहते थे। एक का नाम मोहन था और दूसरे का सोहन। मोहन मेहनती था। वह हमेशा अपने खेतों में काम करता। खाली समय में भी वह कुछ न कुछ करता ही रहता था। जबकि सोहन आलसी था। वह भाग्य पर अधिक भरोसा करता था। उसने खेतों में काम करने के लिए नौकर रखे थें। वह सोचता था जितना किस्मत में लिखा है उतना तो मिल ही जाएगा। वह कभी-कभी ही खेतों में जाता था। पूरा दिन घर में रहता या फिर इधर-उधर घुमते रहता।वह मोहन से भी यही कहता था कि खेतों में काम करने के लिए नौकर रख ले और खुद आराम करो। भाग्य में जो लिखा है उतना ही मिलेगा। लेकिन मोहन हमेशा यही कहता कि कर्म भाग्य से भी ऊपर है। काम करेंगे तो उसका फल अवश्य ही मिलेगा।
सोहन कई-कई दिनों तक खेत पर नहीं जाता तो नौकर भी खेतों का ध्यान ठीक से नहीं रखते और अपनी मनमर्जी से काम करते। न तो ठीक से बुआई करते और न ही सिंचाई। जबकि मोहन दिन-रात खेतों में काम करता। थोड़े दिनों बाद जब फसल कटने का समय आया तब सोहन खेत पर गया। उसने वहां देखा कि समय पर सिंचाई न होने के कारण फसल मुरझा गई है। उसने अपन नौकरों को बहुत डांटा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वहीं दूसरी ओर मोहन के खेत में शानदार फसल लहलहा रही थी।
यह देखकर सोहन को मोहन की बात याद आने लगी। वह मोहन के पास गया और उससे माफी मांगी और वादा किया कि वह आगे से भाग्य पर निर्भर नहीं रहेगा। क्योंकि भाग्य भी उन्हीं लोगों का साथ देता है जो कर्म करते हैं।
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