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सोमवार, जुलाई 25, 2011

संतान और कालसर्प योग----


संतान और कालसर्प योग----


संतानहीनता दाम्पत्य जीवन का दुःखद पहलू हैं । ज्योतिष शास्त्र में संतान सुख के लिए जातक की जन्म कुण्डली में पंचम भाव, पंचमेश एवं गुरू की स्थिति का आंकलन कर विचार किया जाता हैं । 
संतान सुख से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पहलू कालसर्प योग जो कि संतान सुख से वंचित रखने में अपनी भूमिका अदा करता हैं । कालसर्प योग का प्रभाव शनि जैसे क्रूर ग्रह के प्रभाव से भी कहीं अधिक कष्टदायी और पीड़ा दायक होता हैं यह योग जातक को अभाव ग्रस्त बना देता हैं। 


सर्प को काल कहा गया हैं काल का अर्थ नकारात्मक पक्ष से हैं । राहू के जन्म नक्षत्र भरणी हैं तथा उनके देवता सर्प हैं ज्योतिष शास्त्र में राहू को सर्प का मुख एवं केतू को उसकी पूछ कहा गया हैं । 
संतानहीनता योग:---
 (1) यदि मंदमेश छठे भाव में नीच का, शत्रु क्षेत्री या पाप-पीडि़त हो। 
(2) पंचमेष चतुर्थ भाव में नीच का हो, शत्रु घर में या पा-पीडि़त हो। 
(3) पंचमेश लग्न में पाप-पीडि़त होकर अशुभ योग करके बैठा हो तो संतानहीन योग की सृष्टि होती है


उपाय: ---
(1) पंचमेष ग्रह की शांति पूर्ण विधि से कराएं। 
(2) पुत्रेश्टि यज्ञ कराएं। 
(3) शतचंडी का अनुश्ठान कराएं। 
(4) पंचमेष रत्न पहनें।


सर्प श्राप द्वारा संतानहीनता:---
 (1) पंचमेश मंगल हो या मंगल अपने ही नवमांश में हो, पंचम भाव से युक्त या दृष्ट हो, पंचम में राहु आदि पाप ग्रह हो या दृश्टि हो। 
(2) पंचम का कारक मंगल से युक्त हो, लग्नेश राहु युक्त हो या लग्न में राहु हो तथा पंचमेश त्रिक स्थानों (6, 8, 12) में हो। 
(3) पंचम भाव में राहु स्थित हो एवं उसे मंगल देखता हो। 
(4) पंचमेश मंगल हो, पंचम भाव में राहु हो, पंचम भाव शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो। 
(5) पंचम स्थान में शनि हो, पंचमेश राहु से युक्त हो तथा चंद्रमा उसे देखता हो तो यह योग बनता है। 
(6) पंचमेश व लग्नेश निर्बल हो, पंचमेश मंगल से युत हो एवं लग्नेश राहु युत हो तो यह योग बनते हैं। 
(7) तीन केन्द्रों में पाप ग्रह हो तो इलारण्य नामक सर्पयोग बनता है।


उपाय: ---
(1) काल सर्प योग की शांति कराएं। 
(2) मंगल यंत्र एवं नागपाश यंत्र स्थापित कर पूजा करें।
 (3) कालसर्प अंगूठी धारण करें
 (4) नदी में श्रीफल बहाएं (सात शनिवार) 
(5) भगवा गाय का दान करें।


मातृ श्राप द्वारा संतानहीनता: ---


(1) अष्टमेष पंचम में हो और पंचमेश अष्टम में हो तथा चन्द्रमा चतुर्थेष की युति करके छठे भाव में चला गया हो। 
(2) चतुर्थेष अश्टम में हो, लग्नेश व पंचमेश छठे हो, दषमेष शश्ठेश लग्न में हो। 
(3) चतुर्थ भाव का स्वामी होकर मंगल, राहु व शनि से युत हो, लग्न में सूर्य, चन्द्रमा हो तो ये योग बनते हैं। 


उपाय:---
 (1) मातृ यंज्ञ करें 
(2) पिंड दान करें 
(3) वृद्ध स्त्रियों का आशीर्वाद लें 
(4) मातृ आत्मा की शांति का उपाए करें।


पितृ श्राप द्वारा संतानहीनता:--
 (1) सूर्य अष्टम में हो, पंचम स्थान में शनि हो, पंचमेश राहु से युत हो। 
(2) बारहवें स्थान का स्वामी लग्न में हों, अष्टमेष पंचम भाव में हो व दषमेष अष्टम स्थान में हो।
 (3) तुला का सूर्य पंचम भाव में हो तथा मकर या कुंभ में नवामांश में होकर पाप-पीडि़त हो तो ये योग बनते हैं।


उपाय:--
 (1) पितृ यज्ञ कराएं 
(2) पिंड दान कराएं
(3) वृद्ध पुरूषों की सेवा करें 
(4) पितृ आत्मा की शांति का उपाय करें।


प्रेत श्राप द्वारा संतानहीनता:---
 लग्न में राहु एवं बृहस्पति बारहवें स्थान में हो, सूर्य शनि के साथ पंचम भाव में हो तथा निर्बल चंद्रमा सातवें भाव में हो तो यह योग बनता है।
उपाय: ---
(1) प्रेत मुक्ति का उपाय करें 
(2) उसकी मांग पूरी करें 
(3) देवी का अनुष्ठान कराएं 
(4) घर में पूर्ण पवित्रता के साथ वातावरण ईश्वरमय बनाएं।


संतान कारक गुरू मंगल से मुक्त हो, लग्नेश राहू से युक्त हो या लग्न में राहू हो तथा संतानेश त्रिक भाव में हो तो संतान बाधा उत्पन्न हो जाती हैं । संतान भाव अर्थात पंचम भाव में सूर्य, मंगल, शनि, राहू हो तथा संतानेश एवं लग्नेश दोनो ही बलहीन हो तब संतान बाधा की संभावना होती हैं। कर्क या धनू लग्न में संतान भावस्थ राहू, बुध से युक्त या बुध से दृष्टि रखता हो, संतान कारक गुरू राहू से युक्त हो तथा संतान भाव पर पंचम शनि से  दृष्टि हो तो संतान बाधा उत्पन्न होती हैं । 


यदि जातक की जन्म पत्रिका में लग्न में पंचम भाव में राहू, गुरू का अभाव रहता हैं । राहू, गुरू की युति होने पर सर्प दोष से भी संतान बाधा उत्पन्न होती हैं । यदि पंचमेश या पंचम भाव पर शुभ ग्रह का प्रभाव न हो तो संतान का अभाव होता हैं। बृहस्पति को संतानकारक कहा गया हैं । पंचम से पंचम अर्थात नवम स्थान से भी संतान का विचार होता है । पत्नि स्थान अर्थात सप्तम भाव से एकादश भाव पंचम होता हैं इसलिए वह भी स्त्री का संतान भाव हुआ । कुटुम्ब स्थान से परिवार की संख्या व्यक्त होती हें । इस प्रकार संतान का विचार पंचम, नवम, एकादश एवं द्वितीय भाव तथा उसके स्वामियों के बलवान और गुरू की स्थिति के आधार पर किया जाता हैं । 


यदि जन्म पत्रिका में अष्टम भाव में शुक्र, गुरू एवं मंगल की युति हो तो भी संतान का अभाव होता हैं । इन सभी का बली होना संतान प्राप्ति के लिए आवश्यक हैं । जन्म पत्रिका में यदि काल सर्प योग का संबंध पंचम भाव या पंचमेष से हो तो संतान सुख में बाधा आती हैं  । जन्म कुण्डली में पूर्ण कालसर्प योग होने तथा पंचमेष राहू के साथ में होने, पंचम भाव में पापग्रह हो या पंचम भाव को देख रहे है तो भी जातक को संतान सुख प्राप्त नहीं होता हैं । जन्म कुण्डली में कालसर्प योग होते हुए यदि पंचमेष 6 , 8 , 12 भाव में तथा पाप ग्रहों की दृष्टि में स्थित हो तो ऐसी जातक को संतानोत्पत्ति में बाधा आती हैं । 
उपाय:---- 
1 महर्षि पाराशर ने इस पूर्व जन्म कृत श्राप अर्थात कालसर्प दोष के कारण संतान न होने के श्राप से मुक्ति प्राप्ति के अनेक उपाय बताए हैं इन उपायों में प्रमुख हैं नाग पंचमी को कालसर्प योग शांति पूजा, यज्ञ अनुष्ठान आदि करवाकर मनवांछित लाभ प्राप्त किया जा सकता हैं । इसके कारण पूर्व जन्म कृत दोष मीट जाते हैं यह पूजा दो तीन बार करवानी चाहिए । 
2 यदि किसी स्त्री की कुण्डली इस योग से दूषित हैं तो उसे नागपंचमी के दिन वट वृक्ष की 108 प्रदक्षिणा लगानी चाहिए । 
3 पति-पत्नि को नियमित रूप से सर्प सुख का पाठ करना चाहिए । 
4 नागपंचमी का व्रत करें । नवनाग श्रोत का पाठ करें । 
5 सायंकाल पीने के पानी रखने के स्थान पर तेल का दीपक 45 दिनों तक प्रतिदिन जलावे । 
6 यदि जातक के शत्रु अधिक हो या कार्य मे निरन्तर बाधा आती हो तो जिस वैदिक मंत्र से जल में सर्प छोड़ते हैं उसको नित्य तीन बार, स्नान, पूजा-पाठ करने के बाद पढे । भगवान भोलेनाथ की कृपा से उसके सभी शत्रु शीघ्र नष्ट हो जावेगें । यह मंत्र अद्भूत व अमोग हैं परन्तु इसका प्रयोग गुरू की आज्ञा लेकर ही करना चाहिए । 
7 शिव मंदिर में पाच तुलसी के पौधे या पाच शिव मंदिर में एक-एक बिलपत्र या रूद्राक्ष का पौधा लगाने से भी कालसर्प दोष का शमन होता हैं । 
8 अपने घर में मोर पंख लगावें । 
9 पक्षियों को अनाज या जौ डाले अथवा जल में प्रवाहित करें । चिटियां को आटा या शकर का बुरा डाले । आमावस्या के दिन अग्नि को भोजन करावे । 
10 पित्रों को आमावस्या पूर्व चतुर्दशी को नियमित धुप देवें । आमावस्या को ब्राह्मण भोजन करावे। 
उक्त उपाय अपनी सामर्थ अनुसार अपनाकर कालसर्प दोष के दुषप्रभावो से कुछ हद तक कमी की जा सकती हैं तथा पिडित व्यक्ति को लाभ होगा । 





  पं0 दयानन्द शास्त्री 
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,  
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार, 
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) 326023

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